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Sunday, December 3, 2017

उनके होठों पर लिखना (Beauty)



उनके होठों पर लिखना,
गालों पर लिख्नना।
उनके बलखाते काले
बालों पर लिखना।।
या कहना मुस्कान
कमल दल सी खिलती है।
उनकी सूरत, मोहिनी
मूरत से मिलती है।।
या कह दूं कि लब से
उनके शहद झरे है।
उनकी आंखों में दरिया,
सागर गहरे हैं।। 
उनके पायल की रुनझुन
में साज कई हैं।
उनकी गहरी आंखों में
भी राज कई हैं।। 
उनके कंगन, उनके
बिछुए, उनकी मेंहदी।
उनकी झुकती पलकों
में अंदाज कई हैं।। 
उनकी शोखी, हिरनी जैसी
चालों पर लिखना।  
उनके होठों पर लिखना,
गालों पर लिख्नना।। 

- अमित तिवारी 

Monday, November 20, 2017

मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो (You make me)




मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो 
मैं दीप हूं, तुम दीप्ति हो।
मैं दिवस और भोर तुम 
हो मेरे चित की चोर तुम।
मैं अग्नि हूं, तुम तपन हो 
मैं नींद हूं, तुम स्वप्न हो। 
मैं इमारत, नींव तुम 
मैं आत्म हूं और जीव तुम। 
मैं नेत्र हूं, तुम दृष्टि हो 
मैं मेघ हूं, तुम वृष्टि हो।
मैं साधु हूं, तुम साधना
मैं भक्ति, तुम आराधना..
मैं समंदर, तुम नदी हो
मैं हूं पल छिन, तुम सदी हो
मैं ब्रह्म हूं, तुम सृष्टि हो
मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो..

-अमित तिवारी 
दैनिक जागरण

(चित्र गूगल से साभार)

Monday, November 6, 2017

सागर, तुम हो कौन? (Who Are you?)



'सागर, तुम हो कौन?' बड़ी-बड़ी छलकती आंखों से नदी ने कहा। 
'मैं कौन हूं! ये क्या सवाल है? एक तुम ही तो हाे, जो अच्छे से जानती हो कि मैं कौन हूं।' 
'मैं जान ही तो नहीं पाई कि तुम हो कौन? हर रोज चेहरा बदल लेते हो तुम। जब-जब मुझे लगता है कि अब समझ गई हूं कि तुम कौन हो, तब तुम्हारा कोई और रूप आ जाता है मेरे सामने।' 
'नदी... तुम इतना सोचती क्यों हो? तुम सोचती हो, इसीलिए तो समझती नहीं हो। सोचना छाेड़ दोगी, तो समझ जाओगी। इतना आसान सा तो हूं मैं। जैसी नदी, वैसा सागर। आखिर नदी से ही तो बना हूं। तुम पता नहीं कहां उलझ जाती हो? नदी से सागर तक के रास्ते में उलझन की गुंजाइश कहां होती है?' 
'उफ... बस तुम्हारी यही बात... यही बात मुझे उलझा देती है। तुम मुझे जानते ही कितना हो। और जब जानते ही नहीं तो कैसे हो गई मैं तुम्हारी नदी? मुझे चिढ़ होती है तुम्हारी इसी बात से। तुम इतना मत सोचो मेरे बारे में। बिलकुल मत सोचो।' नदी एक सांस में बोलती चली गई। 
'सागर को नदी के बारे में जानने की जरूरत ही क्या है? और फिर सागर थोड़े ना चुनता है अपने लिए नदी। वो तो होता ही नदी के होने से है।' शांत सा सागर यही सोचता रहा।

-अमित तिवारी
दैनिक जागरण

Monday, January 4, 2016

सम-विषम दिल्ली (Odd-Even Delhi)



देश की राजधानी दिल्‍ली इन दिनों सम-विषम के कारण चर्चा में है। स्‍कूली पढ़ाई के दिनों में जिन बच्‍चों ने गणित को हाथ लगाने से तौबा कर ली थी, उन्‍हें भी आजकल गणित के इस मूल पाठ को याद करना पड़ रहा है। 
मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्‍व में आम आदमी पार्टी की सरकार ने राजधानी में पर्यावरण की चिंताजनक स्थिति को देखते हुए तारीख के आधार पर सड़क पर दौड़ने वाली गाडि़यों के निर्धारण की नीति साल की शुरुआत से लागू की है। व्‍यवस्‍था पूरी तरह प्रायोगिक स्‍तर ही लागू हुई है लेकिन चर्चा जोरों पर है। राज्‍य सरकार पहले दिन से ही अपनी पीठ थपथपाने में लगी है तो विरोधी व्‍यवस्‍था की कमियां गिनाने में व्‍यस्‍त हैं। आम जनता की ओर से मिली-जुली प्रतिक्रिया आ रही है। 
इस व्‍यवस्‍था को मुख्‍य तौर पर पर्यावरण की दृष्टि से लागू किया गया है लेकिन आम जनता इस व्‍यवस्‍था के तहत सड़क पर जाम से राहत और बसों के बढ़े फेरे को लेकर ज्‍यादा खुश है। वैसे भी प्रदूषण के इतने कारण हैं कि सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक चुनिंदा निजी गाडि़यों पर रोक लगाकर इस पर बहुत ज्‍यादा काबू पाने की उम्‍मीद करना भी बेमानी सा है। शुरुआती दिनों की रिपोर्ट भी यही कह रही है कि सड़कों पर गाडि़यां तो सम-विषम के हिसाब से ही चल रही हैं, लेकिन प्रदूषण के स्‍तर पर ज्‍यादा फर्क नहीं दिखा है। 

दूसरी ओर विरोधी इस व्‍यवस्‍था को लेकर तमाम तर्क दे रहे हैं। सबसे वाजिब तर्क है दिल्‍ली की परिवहन व्‍यवस्‍था का। सार्वजनिक परिवहन की व्‍यवस्‍था को मजबूत और सुगम किए बिना ऐसी कोई भी व्‍यवस्‍था लंबे समय तक कारगर नहीं हो सकती। केजरीवाल स्‍पष्‍ट कर चुके हैं कि यह अस्‍थायी व्‍यवस्‍था है और सफल रहने पर भी इसे स्‍थायी नहीं किया जा सकता। उनके इस बयान के पीछे की गहराई को समझा जा सकता है। राज्‍य सरकार भले ही अपनी पीठ थपथपाए लेकिन उसे भी इतना अंदाजा है कि हफ्ते-दस दिन के लिए ऐसी व्‍यवस्‍थाओं को लागू करने और उसे स्‍थायी करने में कितना फर्क है। बहरहाल, सड़क पर सार्वजनिक परिवहन के भरोसे चलने वाली जनता जाम मुक्‍त रास्‍ते और बढ़ी बसों से खुश है और उसे यह भी पता है कि यह सिर्फ चार दिन की चांदनी ही है।
- अमित तिवारी 

Wednesday, December 30, 2015

डीडीसीए का ड्रम (DDCA Drum)




अरविंद केजरीवाल कहते बहुत कुछ हैं, लेकिन करते कितना हैं, इसका कोई पैमाना नहीं है। इस बार उनके आरोपों का पैमाना छलका है वित्‍त मंत्री अरुण जेटली पर। केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी का कहना है कि अरुण जेटली के कार्यकाल के दौरान डीडीसीए में जमकर धांधली हुई और इस बात के पुख्‍ता सुबूत भी उनकी पार्टी के पास हैं। यही नहीं, उन्‍होंने डीडीसीए में यौन शाेषण का मुद्दा भी उठाया है। 
डीडीसीए का ड्रम बजाकर उनकी पार्टी कुछ दिनों से राजनीति में नई हलचल पैदा किए हुए है। देखना दिलचस्‍प होगा कि इन सुबूतों में और दिल्‍ली की पूर्व मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित के खिलाफ सुबूतों में कितनी समानता है। सरकार में आने से पहले तक केजरीवाल और उनकी पार्टी ने बढ़-चढ़कर शीला दीक्षित के खिलाफ 300 से ज्‍यादा पन्‍नों के सुबूत होने का दावा किया था लेकिन सरकार में आने के बाद जब कार्यवाही की बात हुई तो उन्‍होंने उल्‍टा पत्रकारों को ही सुबूत लाने की जिम्‍मेदारी दे दी। फिलहाल केजरीवाल एक बार फिर कई पन्‍नों के सुबूत अरुण जेटली के खिलाफ होने का दावा कर रहे हैं। एक ओर जब सुब्रमण्‍यन स्‍वामी दस्‍तावेजों के दम पर हेराल्‍ड मामले में कांग्रेस की अध्‍यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी को अदालत में हाजिर होने के लिए मजबूर कर देते हैं तो यह प्रश्‍न हर आम आदमी के दिमाग में आता है कि आखिर केजरीवाल अपने सुबूतों को लेकर अदालत के पास क्‍यों नहीं जाते। क्‍या केजरीवाल को नहीं पता कि प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में सुबूत लहराने और आरोप लगाने से किसी को ना तो दोषी ठहराया जा सकता है और ना उसे सजा दी जा सकती है। दूसरी ओर जेटली ने केजरीवाल के खिलाफ मानहानि का मामला दायर कर दृश्‍य को और रोमांचक बना दिया है। जेटली केंद्र सरकार के ऐसे मंत्री हैं जो जमीनी स्‍तर पर जनता के बीच सबसे कम लोकप्रिय माने जा रहे हैं। इसके बावजूद भाजपा उनको लेकर झुकने की तैयारी में नहीं दिखाई दे रही। जेटली के मामले में कीर्ति आजाद का मोर्चा खोलना भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी करने वाला है। पार्टी से निलंबन के बाद भी अाजाद के तेवर में कोई बदलाव नहीं आता दिख रहा है। सारे समीकरणों को देखते हुए गेंद फिलहाल केजरीवाल के पाले में दिख रही है लेकिन इस बात की उम्‍मीद कम ही है कि वो कोई गोल कर पाएंगे। 
- अमित तिवारी 

Saturday, April 18, 2015

बहुत अब हो गया (Its Enough)



बहुत अब हो गया किस्सा
मनाने रूठ जाने का।
फकत अब वक़्त आया है
किसी ताज़ा बहाने का।।
हमीं से अब छुपाते हो 
तुम अपने दिल की लाचारी।
कि अब तो छोड़ भी दो तुम 
ये किस्‍सा आजमाने का।।
किसी के साथ हंसने का
तरीका अब पुराना है।
कोई देखो तरीका तुम
नया दिल काे जलाने का।।
तुम्‍हें तितली कहूं, या फूल 
या गुल या कहूं गुलशन।
तुम्‍हीं कह दो तरीका अब
खुद ही तुमको बुलाने का।।
अब तुम भूल जाओ वो 
तुम्‍हारी याद में रोना।
कि गुजरा वक्‍त है अब 
वक्‍त वो आंसू बहाने का।।
चमकता चांद जो देखा है 
तुमने आसमां में कल।
उसी से ये हुनर सीखा है
दाग अपने दिखाने का।।

-अमित तिवारी 
दैनिक जागरण 

Friday, April 17, 2015

बस इतना हो, अच्छा हो...(Real Dream)



उसको लिखना, उसको पढना,
उस पर किस्सागोई सी।
उसमे होना, जी भर रोना,
उसमे नींदे सोयी सी।।
उसको पाना, उसको खोना,
उस बिन पल पल कट जाना।
उसकी आड़ी तिरछी सब,
रेखाओं का रट जाना।।
उसका कहना, उसका रहना,
उसकी आँखों के मोती।
अब भी जान नहीं पाया,
बिन उसके साँसे कब होती।।
कह दूँ उसको छोड़ चुका हूँ,
फिर कैसे मैं जिंदा हूँ।
उसकी आँखें नम आखिर क्यूँ?
मैं अब भी शर्मिंदा हूँ।।
उसके वादे, उसके गीत,
उस चेहरे पर मेरी जीत।
उसकी खातिर सपने सारे,
उसकी खातिर सुर-संगीत।।
उसको सुनना, उसको गुनना,
उसकी धुन में खो जाना।
उसकी पलकों के साये में,
मेरे सपनों का सो जाना।।
उससे कह दूं दिल का किस्‍सा,
जैसा झूठा सच्‍चा हो।
वो हो, मैं हूं, बस कुछ सपने,
बस इतना हो, अच्‍छा हो...
बस इतना हो, अच्‍छा हो... 
- अमित तिवारी 
दैनिक जागरण 

Friday, March 13, 2015

प्रतिभा पहचान की मोहताज नहीं होती





लड़कियां वैसे तो हर क्षेत्र में लड़कों को चुनौती दे रही हैं, लेकिन जब बात फैशन की हो तो लड़कों से कई कदम आगे दिखाई देती हैं। लाजपत नगर के साउथ दिल्‍ली पॉलिटेक्निक फॉर वुमेन में आयोजित वार्षिक फैशन प्रजेंटेशन शो में कॉलेज की लड़कियों ने अपनी इसी प्रतिभा का मुआयना कराया। 'रिफ़लेक्‍शन' के नाम से आयोजित इस प्रजेंटेशन में लड़कियों ने अपने आसपास और प्रकृति को आधार बनाकर तरह-तरह के डिजाइन पेश किए। 18 अलग-अलग फैशन सिक्‍वेंस में स्‍थापित फैशन डिजाइनरों को मात देती 36 युवा फैशन डिजाइनर लड़कियों ने दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर दिया। सोने पर सुहागा का काम किया इन डिजाइनरों की मेहनत को रैम्‍प पर सबके सामने लाने वाली 108 मॉडल लड़कियों ने। रैम्‍प पर लड़कियों का आत्‍मविश्‍वास किसी को भी अपनी ओर आकर्षित करने में सक्षम था। इस मौके पर अध्‍यापिका शिल्‍पा अबी ने बताया कि छात्राओं का उत्‍साह बढ़ाने के लिए कॉलेज ऐसी गतिविधियों को प्रोत्‍साहन देता है। कॉलेज की निदेशक आशिमा चौधरी ने अध्‍यापिकाओं और छात्राओं की मेहनत की सराहना की। आमतौर मैं रिपोर्ताज को ब्‍लॉग का हिस्‍सा नहीं बनाता, लेकिन कॉलेज के प्रयास और लड़कियों की प्रतिभा ने ऐसा करने पर मजबूर कर दिया। 'साउथ दिल्‍ली पॉलिटेक्निक फॉर वुमेन' दिल्‍ली में फैशन डिजाइनिंग एंड मर्चेंडाइजिंग सेक्‍टर को अकेडमिक प्रोग्राम का हिस्‍सा बनाने वाला अपनी तरह का पहला संस्‍थान है। यहां 18 अलग-अलग विधाओं में वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाती है। कॉलेज की कोशिश को सलाम तो बनता है। 

-अमित तिवारी 
दैनिक जागरण

Friday, February 20, 2015

बही लिखना, सनद लिखना (My Love)



बही लिखना, सनद लिखना
मेरी चाहत का कद लिखना।
मेरी बातों को तुम कीकर
और अपने लब शहद लिखना।।
..................
तुम्हें पाना नहीं फिर भी
तुम्हारी याद में खोना।
तुम्हारे ख्वाब में जगना
तुम्हारी नींद में सोना।।
मगर फिर हर घड़ी मुंह
फेरकर वो बैठ जाने की।
तुम अपनी बेरुखी लिखना और
मेरी जिद की हद लिखना।।
...........
न जाने प्यार था, व्यापार था
लाचार था ये मन।
उधर संसार था, इस पार था
बेकार सा जीवन।।
कभी बैठो कलम लेकर
जो मन के तार पर लिखने।
वो स्वप्‍नों के बही खाते
वो साखी, वो सबद लिखना।।
..............
कहां मैं सीख पाया था
वो शब्दों के महल बोना।
असल था प्यार वो मेरा
था जिसके ब्याज में रोना।।
किताबों में कभी लिखना
हिसाब अपने गुनाहों का।
बहे जो ब्याज में आंसू
वो सब के सब नकद लिखना।।
बही लिखना सनद लिखना...

-अमित तिवारी
दैनिक जागरण 

Saturday, February 14, 2015

नवजीवन मिल जाए (Priytama)



अधरों का चुंबन मिल जाए
मुझको नवजीवन मिल जाए
अंतर्मन के इन भावों को 
तेरा अभिनंदन मिल जाए
.......
मिल जाए तुझसे मिलने का 
पलभर का किस्‍सा जीवन में 
भावों का सागर सिमटेगा 
पलभर तेरे आलिंगन में 
... ....
आलिंगन में भरकर तुझको 
फिर जीवन तट छूटे तो क्‍या 
सांसों में जब तू बस जाए 
फिर सांसों की लट टूटे तो क्‍या 
....... 
तो क्‍या गर टूटे स्‍वप्‍न सभी 
जीवन के मरु सागर में 
इक प्रेम सुधा की बूंद भली 
स्‍वप्‍नों के छोटे गागर में 
....... 
गागर ये तेरे स्‍वप्‍नों का
उस क्षीर सिंधु सा पावन है
वो पल जो तुझमें बीता है 
वो पल सबसे मनभावन है 
.....
मनभावन है मन में तेरा 
आना, जाना, जगना, सोना 
जीवन का सारा सत्‍य यही
तेरा होना, मेरा होना 
.........

-अमित तिवारी 
दैनिक जागरण 
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