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Monday, November 20, 2017

मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो (You make me)




मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो 
मैं दीप हूं, तुम दीप्ति हो।
मैं दिवस और भोर तुम 
हो मेरे चित की चोर तुम।
मैं अग्नि हूं, तुम तपन हो 
मैं नींद हूं, तुम स्वप्न हो। 
मैं इमारत, नींव तुम 
मैं आत्म हूं और जीव तुम। 
मैं नेत्र हूं, तुम दृष्टि हो 
मैं मेघ हूं, तुम वृष्टि हो।
मैं साधु हूं, तुम साधना
मैं भक्ति, तुम आराधना..
मैं समंदर, तुम नदी हो
मैं हूं पल छिन, तुम सदी हो
मैं ब्रह्म हूं, तुम सृष्टि हो
मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो..

-अमित तिवारी 
दैनिक जागरण

(चित्र गूगल से साभार)

21 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-11-2017) को "भावनाओं के बाजार की संभावनाएँ" (चर्चा अंक 2794) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. इस सम्मान के लिए आपका बहुत बहुत आभार...

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  3. आपकी लिखी रचना  "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 22नवम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. यह अवसर देने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार...

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  4. वाह! सुंदर भावप्रवण अभिव्यक्ति।

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    1. धन्यवाद रविंद्र जी...

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  5. Replies
    1. धन्यवाद शुभा जी...

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  6. रचना बहुत अच्छी है

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    1. बहुत-बहुत आभार नीतू जी...

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  7. बहुत बहुत सुंदर !

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    1. उत्साहवर्धन के लिए आपका आभार...

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  8. अति सुंदर रचना

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    1. धन्यवाद साेनू जी...

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  9. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आपका...

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  10. बहुत बहुत बहुत सुंदर

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    Replies
    1. प्रशंसा के इन शब्दों के लिए आभार...

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  11. आभार विश्व मोहन जी...

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